उतर कर आएगी आँगन में यारो चाँदनी कब तक जला कर ख़ून-ए-दिल अपना करें हम रौशनी कब तक जो मय-आशाम हैं प्यासे पलट आते हैं महफ़िल से रहेगा दस्त-ए-ज़ाहिद में निज़ाम-ए-मय-कशी कब तक जला कर शम्अ' पर शम्अ' कोई दीवाना कहता था मैं देखूँगा कि अब मिटती नहीं है तीरगी कब तक ये गुलशन के मुहाफ़िज़ ये लुटेरे रंग-ओ-निकहत के करेंगे इस तरह नीलाम फूलों की हँसी कब तक खड़ा है आज हर इंसान अरमानों के मक़्तल में सज़ा जीने की पाएगी न जाने ज़िंदगी कब तक मोहज़्ज़ब जानवर तहज़ीब के जंगल का बाशिंदा लहू पीता रहेगा आदमी का आदमी कब तक क़लम से काम लेना चाहिए तलवार का 'रिज़वाँ' फ़क़त तफ़रीह की ख़ातिर ये शेर-ओ-शायरी कब तक