उठेगी उन के चेहरे से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता नज़र आ जाएगा ये इंक़लाब आहिस्ता आहिस्ता हमेशा इश्क़ में सब्र-ओ-सुकूँ से काम चलता है दिल-ए-नाकाम होगा कामयाब आहिस्ता आहिस्ता ये रुस्वाई तो लाज़िम थी मगर इतना किया मैं ने हुआ रुस्वा ज़माने में शबाब आहिस्ता आहिस्ता सवाल उन के तो अक्सर बर्क़-रफ़्तारी से होते हैं निकलता है मिरे मुँह से जवाब आहिस्ता आहिस्ता सुना दे फ़ैसला जो कुछ भी है ऐ दावर-ए-महशर न कर मेरे गुनाहों का हिसाब आहिस्ता आहिस्ता तसल्ली उन के मिलने से भी अब होती नहीं दिल की यहाँ तक बढ़ गया है इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता ये पीना भी है क्या पीना ये बख़्शिश भी है क्या बख़्शिश पिलाई मुझ को साक़ी ने शराब आहिस्ता आहिस्ता यहाँ तक गुफ़्तुगू में तेज़ चलती थी ज़बाँ उन की ये कहना ही पड़ा मुझ को जनाब आहिस्ता आहिस्ता तुनक-ज़र्फ़ों की सोहबत रास आती ता-ब-कै उस को जहाँ में हो गई रुस्वा शराब आहिस्ता आहिस्ता पसंद आई हमें ये बात 'साहिर' जब कहा उस ने वफ़ादारों का होगा इंतिख़ाब आहिस्ता आहिस्ता