उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ यहाँ के शोर से भागो कहीं भी खो जाओ लहू लहू न करो ज़िंदगी के चेहरे को सितमगरों की नवाज़िश से दूर हो जाओ कहाँ फिरोगे ग़ुबार-ए-सफ़र को साथ लिए मता-ए-दर्द को दामन में ले के सो जाओ करम की भीक कहाँ क़ातिलों की बस्ती में बदन का ख़ोल उठाओ लहद में सो जाओ ये साया-दार शजर तो फ़रेब देते हैं ख़िज़ाँ के साथ रहो आँधियों के हो जाओ ये ज़िंदगी तो फ़रेबों का आइना ठहरी अब अपनी खोज में भटको फ़रार हो जाओ