वफ़ा के दाग़ को दिल से मिटा नहीं सकता ये वो चराग़ है तूफ़ाँ बुझा नहीं सकता मुझे कुछ ऐसी पिलाई है चश्म-ए-साक़ी ने सुरूर जिस का कभी दिल से जा नहीं सकता किसी की चीन-ए-जबीं को समझ दिल-ए-मुज़्तर ख़फ़ा वो हैं कि तो उल्फ़त छुपा नहीं सकता क़फ़स क़फ़स है गुलों से सजा करे सय्याद चमन का लुत्फ़ असीरी में आ नहीं सकता कभी इस उजड़े चमन में बहार आएगी ये 'क़ादरी' के गुमाँ में भी आ नहीं सकता