वफ़ा की लाज हूँ मैं प्यार का समुंदर हूँ ये तुझ से किस ने कहा रास्ते का पत्थर हूँ दिलों पे जिन के शुजाअ'त का नक़्श है मेरी वो ए'तिराफ़ करेंगे कि में सिकंदर हूँ बहार ढूँढती फिरती है जिस को आलम में अहालियान-ए-चमन मैं वही तो मंज़र हूँ पड़ा हुआ हूँ अभी पत्थरों के बीच मगर मुझे भी देख ज़माने कि मैं भी गौहर हूँ वो आज ढूँड रहा है इधर उधर मुझ को उसे ख़बर ही नहीं मैं ज़मीं के अंदर हूँ ये ग़म तो 'सोज़' का दामन पकड़ के कहता है तू मुझ से दूर न जा मैं तिरा मुक़द्दर हूँ