वही जो मंज़िल-ए-शम्स-ओ-क़मर में रहता है वो हुस्न बन के हमारी नज़र में रहता है नज़र को अपनी छुपाए हुए हूँ मैं सब से कि एक पर्दा-नशीं इस नज़र में रहता है तुम्हारी दीद का अरमाँ जो घट गया दिल में वो बन के नाला तलाश-ए-असर में रहता है असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-परीशाँ हूँ इस लिए ऐ दोस्त मिरा ख़याल हमेशा सफ़र में रहता है क़फ़स की ज़िंदगी-ए-बे-मज़ा को कब हासिल जो लुत्फ़ यूरिश-ए-बर्क़-ओ-शरर में रहता है जिधर निगाह उठाऊँ उसी का अक्स उभरे उसी का जल्वा 'जमाली' नज़र में रहता है