वही तअल्लुक़-ए-ख़ातिर जो बर्क़-ओ-बाद में है दिल-ए-सितम-ज़दा की हसरत-ओ-मुराद में है हर एक अहद की होती है इक ख़ुसूसिय्यत हमारे दौर में यकसानियत तज़ाद में है किसी नतीजे पे पहुँचे हैं ग़ौरो-ओ-फ़िक्र के बा'द तो ये कि सारा जहाँ एक गर्द-बाद में है अगर नज़र हो तो पढ़ लो पयाम-ए-बेदारी फ़सील-ए-शहर पे लिक्खा हुआ फ़साद में है वो बात सारी किताबों में मिल नहीं सकती जो इंक़लाब के छोटे से इस्तिनाद में है वही असास-ए-मोहब्बत भी है अक़ीदत भी वो ए'तिमाद का पहलू जो ए'तिक़ाद में है वही तो फ़न में रिवायत की रूह है 'आज़र' वो एक छोटा सा नुक्ता जो इज्तिहाद में है