वक़्त जैसा है ब-हर-तौर गुज़र जाना है आज जो ज़िंदा हक़ीक़त है कल अफ़्साना है कब जली शम-ए-तमन्ना हमें कुछ याद नहीं इतना मा'लूम है जल कर उसे बुझ जाना है मेरी वहशत ने अभी पाँव निकाले भी न थे दिल-ए-बे-ताब ने ज़िद की मुझे घर जाना है वा अगर बाब-ए-मुरव्वत को नहीं है होना आज ही कह दें जो कल आप को फ़रमाना है गर्दिश-ए-वक़्त का ये जब्र है शायद जो लोग सुब्ह ज़िंदा हैं मगर शाम को मर जाना है चश्म-ए-बीना पे लगी तोहमत नज़्ज़ारा यूँही हद-ए-इदराक तलक तार-ए-नज़र जाना है ग़र्क़ होना न कहीं ख़्वाब-ए-फ़रामोशी में मुँह अँधेरे ही तुम्हें 'राही' अगर जाना है