वक़्त के ख़ुदाओं में कैसी होशियारी है भेस हैं अमीरों के ज़ेहनियत भिकारी है ख़ुद-बख़ुद नहीं हाएल नफ़रतों की दीवारें कुछ ख़ता तुम्हारी थी कुछ ख़ता हमारी है लाख मैं शहादत दूँ कोई क्यों ये मानेगा शम्स ने मिरे घर में तीरगी उतारी है कर लिया सभी ने तय मुझ को तो रुलाने का इक हँसी पे मेरी तो सब को बे-क़रारी है क़हक़हे हों आँसू हों चाहे सुख हों या दुख हों मेरी झोंपड़ी मुझ को हर तरह से प्यारी है दुश्मनों की महफ़िल में ले चला मुझे ये दिल मुझ पे ऐ ख़ुदा कैसी बेबसी ये तारी है इक ज़रा सा ग़म 'नश्तर' क्यों भला न रास आया फूल ने तो काँटों में ज़िंदगी गुज़ारी है