वो आए निगार मैं न मानूँ आ जाए क़रार मैं न मानूँ वो हमदम ग़ैर हो गया है दम-साज़ हो यार मैं न मानूँ दुज़्दीदा नज़र में एक नज़र है वो हों न दो-चार मैं न मानूँ जो वक़्त गया वो फिर कहाँ है छूटे वो शिकार मैं न मानूँ खटका न हो आमद-ए-ख़िज़ाँ का ऐ बाग़-ओ-बहार मैं न मानूँ बाज़ आए तू अपनी शोख़ियों से ऐ फ़ित्ना-शिआ'र मैं न मानूँ आराम मिले जहाँ में उस को तू जिस का हो यार मैं न मानूँ नालों में तेरे असर हो पैदा ऐ 'साक़ी'-ए-ज़ार मैं न मानूँ