वो आसमाँ के दरख़शिंदा राहियोँ जैसा अँधेरी शब में सहर की गवाहियों जैसा किरन-शुऊर, दिल-ए-जहल में उतारता जा कि वक़्त आन पड़ा है तबाहियों जैसा फ़क़ीर-ए-फ़र्दा! तिरे नाम से मिला है हमें ये मुल्क-ए-ख़्वाब, तिरी बादशाहियों जैसा नियाज़-ओ-अर्ज़-ए-सुख़न से कहाँ फ़रो होवे ग़ुरूर-ओ-नाज़ कि है कज-कुलाहियों जैसा कहा था किस ने कि शाख़-ए-नहीफ़ से फूटें गुनाह हम से हुआ बे-गुनाहियों जैसा मिरी बरात किसी अजनबी का लिख्खा हुआ ये हर्फ़ हर्फ़ नविश्ता सियाहियों जैसा