यादश-ब-ख़ैर है वही चेहरा ख़याल में सौ जन्नतें जवान हैं गोया ख़याल में किस शान से शरीक तिरी अंजुमन में हैं बैठे हों जैसे हम कहीं तन्हा ख़याल में गुज़रा है इश्क़ ही में ये आलम भी मुद्दतों थी शाम ज़ेहन में न सवेरा ख़याल में देखा था ख़्वाब में उन्हें नादिम तो क्या कहें क्यूँ अब तक आ रहा है पसीना ख़याल में अल्लाह रे ये मक़ाम तिरे तिश्ना-काम का सूखे पड़े हैं सारे ही दरिया ख़याल में जुगनू से यक-ब-यक जो फ़ज़ा में चमक उठे ये कौन था अभी अभी क्या था ख़याल में ऐ 'दिल' अजब वो शहर-ए-सितम था कि आज तक है कोई अध-खुला सा दरीचा ख़याल में