वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा मैं आँख बंद कर के उसे पूजता रहा ख़ुश-फ़हमियों का आज भरम खुल गया तो क्या इक मोड़ पर तो उस का मिरा सामना रहा तुम को तो एक उम्र हुई है जुदा हुए हैराँ हूँ रात-भर मैं किसे ढूँढता रहा इक इक दरीचा बंद था फिर भी ये डर रहा छुप-छुप के जैसे कोई हमें झाँकता रहा उस की निगाह फ़ित्ना-अदा तो बहाना थी ख़ुद मेरा दिल भी मेरा लहू चूसता रहा 'अंजुम' किसे ख़बर कि कोई महव-ए-इंतिज़ार कल जलती दोपहर में अकेला खड़ा रहा