वो ज़िद पे रहा है झुकाने पे हुस्ना हमें तो रहे हैं निशाने पे हुस्ना निगाहों का तेरे क़हर ही क़हर है ज़रा तो रहम कर ज़माने पे हुस्ना जिन्हें याद करके सदियाँ गँवा दी लगे हैं हमें वो भुलाने पे हुस्ना पिता चाहता है महज़ चंद साँसें हैं बेटों की नज़रें ख़ज़ाने पे हुस्ना मोहब्बत की राहों में सब कुछ मिटा कर 'कशिश' है अड़ी सर कटाने को हुस्ना