वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से वो नज़र-गुज़र की शराब थी जो छलक गई मिरे जाम से मिरी चश्म-ए-शौक़ में कैफ़-ए-दिल जो भरा था ख़ून के नाम से वही शो'ला बन के भड़क उठा वही फूट निकला है जाम से कोई रात आँखों में काट ली कोई तारे गिन के गुज़ार दी यही मरते मरते हवस रही मैं कभी तो सो रहूँ शाम से बड़ी दिल-फ़रेब है दास्ताँ तिरा ज़िक्र और मिरा बयाँ वो दहन दहन वो ज़बाँ ज़बाँ जो है आश्ना तिरे नाम से मुझे क्या ज़रूरत-ए-चारा-गर इसी इक दवा में हैं दो असर कभी मर-मिटा तिरे नाम पर कभी जी उठा तिरे नाम से मुझे वाइ'ज़ अपनी लगी है धुन कोई फूल आतिश-ए-तर का चुन मिरे दर्द-ए-दिल की हदीस सुन कभी छेड़ कर लब-ए-जाम से जो अज़ल में था वही नूर है कि चराग़-ए-महफ़िल-ए-तूर है कोई रहने वाला ज़रूर है मिरे दिल में दर्द के नाम से जो तड़प थी कल वही आज है यही मिरे दिल का इलाज है मिरी ज़िंदगी भी 'सिराज' है इसी इज़्तिराब-ए-दवाम से