वफ़ा के नाम पे ज़हराब एक और सही बिखर गए हैं कई ख़्वाब एक और सही बुझे बुझे कई मंज़र हैं दीदा-ए-तर में ये डूबता हुआ महताब एक और सही जला के एक दिया हम ने और देख लिया धुआँ धुआँ सी ये मेहराब एक और सही लगी है भीड़ सफ़ीना डुबोने वालों की तमाशा कोई सर-ए-आब एक और सही तुम्हारे बा'द हर इक शय ख़फ़ा ही थी हम से ये बे-नियाज़ी-ए-अहबाब एक और सही तकल्लुफ़ात से भी लोग काम लेते हैं ख़फ़ा जो है उसे आदाब एक और सही कभी तो आएगा उस को 'रऊफ़' अपना ख़याल शिकायत-ए-दिल-ए-बे-ताब एक और सही