वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ हैं लबों पर इश्क़ की गुलकारियाँ हैं हज़ारों बंदिशें हैं ख़्वाहिशों पे जहान-ए-दिल की भी तय्यारियाँ हैं सबब उस शाख़-ए-गुल के टूटने का हवा-ए-तुंद की मक्कारियाँ हैं अभी तक रंज से फ़ारिग़ नहीं दिल अभी तक इश्क़ में ग़म-ख़्वारियाँ हैं मिलाई आँख जा कर मौत से तब तुम्हारे घर में ये किलकारियाँ हैं ख़ुलूस-ए-दिल हमारा कम नहीं है तबीअ'त में मगर ख़ुद्दारियाँ हैं रही है 'साहिबा' तो सादगी में दिलों के खेल में अय्यारियाँ है