वफ़ा न उन के न अपने ही बस में क्या कीजे असीर-ए-बहर हैं तिनकों से क्या गिला कीजे हिसार-ए-संग से टकरा के मर तो सकते हैं नजात सामने है कुछ तो हौसला कीजे बहुत दिनों से नहीं कोई ज़िंदगी का जवाज़ बदल के लफ़्ज़ वही वा'दा फिर अता कीजे पहाड़ काटने वालों को कोई समझा दे कि हो सके तो किसी दिल में रास्ता कीजे पलक पे ठहरी हुई शब पिघल के बह जाए किसी उदास फ़साने की इब्तिदा कीजे न यूँ हो लाश के पुर्ज़े ख़ला में खो जाएँ ज़मीं का ख़ात्मा-बिल-ख़ैर हो दुआ कीजे इसी को अपना कफ़न कीजिए और सो रहिए ये शब न गुज़रेगी 'क़ैसी' ख़ुदा-ख़ुदा कीजे