वो जवानी तो जवानी ही नहीं जिस की हो कोई कहानी ही नहीं दर्द कोई बे-करानी ही नहीं बारे तेरी मेहरबानी ही नहीं मैं समझता था है ग़ैरत-मंद वो उस की तो आँखों में पानी ही नहीं शादी-ओ-ग़म का न गर हो इम्तिज़ाज ज़िंदगानी ज़िंदगानी ही नहीं हर कोई मरता है अपने वक़्त पर मौत होती ना-गहानी ही नहीं ऐ दिल-ए-बर्बाद अब मैं क्या करूँ बात मेरी तू ने मानी ही नहीं आज-कल की शायरी क्या शायरी शे'र मौज़ूँ है मआ'नी ही नहीं मैं तो वो कहता हूँ 'अख़्तर' जो है हक़ मुझ को आती लन-तरानी ही नहीं