वक़्त का आप भी हर हाल में पीछा कीजे वर्ना बैठे हुए तक़दीर को कोसा कीजे आप अल्फ़ाज़ के ख़ंजर को न फेंका कीजे दिल पे क्या गुज़रेगी ये भी ज़रा सोचा कीजे जब भी पेचीदा गुज़रगाहों से गुज़रा कीजे किस तरह लोग बदल जाते हैं देखा कीजे अपनी बर्बाद मोहब्बत का न चर्चा कीजे ख़ुद को दुनिया की निगाहों में न रुस्वा कीजे अपने सीने से उसूलों को लगाए रखिए हाँ ज़माने के तक़ाज़ों को भी समझा कीजे ज़िंदगी चैन से गुज़रेगी यक़ीनन ऐ 'ज़िया' पहले जीने का सलीक़ा भी तो सीखा कीजे