वक़्त का क्या है तक़ाज़ा नहीं देखा जाता इश्क़ में अदना-ओ-आ'ला नहीं देखा जाता एक ही वक़्त में मिल जाए तो पीछा छूटे ज़िंदगी भर का सुलगना नहीं देखा जाता ये शब-ओ-रोज़ ये मौसम ये बदलते मंज़र रात-दिन का ये तमाशा नहीं देखा जाता आइना देख के हम ख़ुद को न पहचान सके अपने चेहरे का बिखरना नहीं देखा जाता जाने हालात हमें और दिखाएँ क्या क्या नस्ल-ए-नौ का ये बहकना नहीं देखा जाता शो'बदा-बाज़ सियासत से तो बाज़ आए हम क्या करें हम से दिखावा नहीं देखा जाता 'शौक़' उस ख़्वाब की ता'बीर मिली है ऐसी अब कोई ख़्वाब सुहाना नहीं देखा जाता