ज़िंदगी तेरा बोल-बाला है तुझ से हर सम्त ही उजाला है तुम कुएँ के क़रीब बैठे हो हम ने सागर खँगाल डाला है किस तरफ़ से नजात पाऊँ मैं हर तरफ़ मकड़ियों का जाला है तुझ को किस सम्त खोजने जाऊँ कहीं मस्जिद कहीं शिवाला है अपनी यादों की दीजिए शबनम ज़िंदगी आग है जवाला है अपनी नज़रों को दे के आज़ादी मुस्तक़िल तुम ने दर्द पाला है ज़ीस्त को 'शौक़' तुम न समझोगे इस का हर भेद ही निराला है