वक़्त उड़ने का है गिरवी बाल-ओ-पर क्यूँकर रखें हम हैं फ़ितरत से मुसाफ़िर कोई घर क्यूँकर रखें जब ज़रूरत थी किसी शाने की हम को न मिला अब मिला तो सोचते हैं उस पे सर क्यूँकर रखें वक़्त ख़ुद इक राहज़न है ज़िंदगी की राह में पास अपने इश्क़ सा लाल-ओ-गुहर क्यूँकर रखें जब तलक है साँस हम को ज़ख़्म खाने और हैं एक ग़म की याद में फिर चश्म-ए-तर क्यूँकर रखें तुझ को पा लें या कि खो दें है ज़ियाँ दोनों तरह फिर भला ऐ जान-ए-जाँ तेरी ख़बर क्यूँकर रखें