वो अब पहली सी तुझ में ख़ू नहीं है वही मैं हूँ मगर वो तू नहीं है जहाँ का दर्द-ओ-ग़म है दिल में लेकिन हमारी आँख में आँसू नहीं है गुलिस्ताँ में नहीं चलती सबा भी गुलों में रंग तो है बू नहीं है फ़ज़ा में ज़हर ये फैला है कैसा रिफ़ाक़त की कहीं ख़ुशबू नहीं है मिरे क़ब्ज़े में है हर चीज़ लेकिन मिरे दिल पर मुझे क़ाबू नहीं है कसक है कर्ब है सोज़िश है 'सालिक' मिरे अशआ'र में जादू नहीं है