वो बे-पर्दा वारिद हुआ चाहता है सर-ए-अंजुमन हश्र उठा चाहता है न महरूम साक़ी रहे साग़र-ए-दिल शराब-ए-हक़ीक़त-नुमा चाहता है नहीं उज़्र-ए-तक़्सीर इस दिल को कोई मगर हक़-ब-जानिब सज़ा चाहता है गिरी बर्क़ सह्न-ए-गुलिस्ताँ में लेकिन मिरा आशियाँ भी जला चाहता है तलाश-ओ-तलब में जो सरगर्म दिल था वो अपना ही ख़ुद अब पता चाहता है ये हम ने ज़माने में देखा है अक्सर बुरा है वही जो भला चाहता है कमी है तड़पने की लज़्ज़त में अब तक दिल-ए-दर्द इस से सिवा चाहता है मरीज़-ए-तमन्ना मोहब्बत की रोगी कोई दम में रुख़्सत हुआ चाहता है गरेबाँ तसद्दुक़ है जोश-ए-जुनूँ पर कोई अब तमाशा बना चाहता है गुनहगार-ए-उल्फ़त सज़ा की कमी पर किसी से हिसाब-ए-ख़फ़ा चाहता है मोहब्बत में सब कुछ किसी ने लुटाया न मालूम अब कोई क्या चाहता है 'ज़िया' इश्क़ में अब ख़ुदा उस से समझे जो मुझ को फँसा कर बचा चाहता है