वो दिल नहीं है जिस में तिरी आरज़ू न हो वो गुल नहीं नसीब जिसे रंग-ओ-बू न हो दिल जीतने को यार का जाता है बज़्म में कोशिश में कामयाब ख़ुदाया अदू न हो आता नहीं है शेर मिरे ज़ह्न में कोई जब तक कि वो हसीन मिरे रू-ब-रू न हो दुनिया पे दिल की बात न खुल जाए इस लिए नज़रों से हो ज़बाँ से अगर गुफ़्तुगू न हो बाक़ी शब-ए-फ़िराक़ है दिल हो गया तही फिर आँख कैसे रोए जो दिल में लहू न हो ऐ रब हमारे दिल में भी आ कर क़ियाम कर औक़ात उस की क्या है कि जिस दिल में तू न हो 'ज़ाकिर' अमल से बनते हैं इंसान ज़ी-वक़ार ज़िंदा नहीं वो लोग जिन्हें जुस्तुजू न हो