वो हुस्न-ए-सीम-तन है और मैं हूँ तर-ओ-ताज़ा चमन है और मैं हूँ विसाल उस का नसीबों से मिला है वो ख़ुशबू सा बदन है और मैं हूँ खिंची शमशीर सा बैठा है कोई किसी का बाँकपन है और मैं हूँ सहर तक आज तो महकेगी महफ़िल वो जान-ए-अंजुमन है और मैं हूँ ग़रज़ दुनिया से कुछ मुझ को नहीं है मिरा दीवाना-पन है और मैं हूँ चलेगी गुफ़्तुगू ता-उम्र यूँही वो मेरा हम-सुख़न है और मैं हूँ उसे पाना है 'ज़ाकिर' पा ही लूँगा मिरे दिल की लगन है और मैं हूँ