वो दिलकशी जो तिरे हुस्न और जमाल में है उसी का अक्स फ़रोज़ाँ मिरे ख़याल में है ख़ुमार-ए-तिश्ना-लबी मौसम-ए-जुनूँ-ख़ेज़ी कभी ये हिज्र में है और कभी विसाल में है कभी सहर में कभी शाम में है जल्वा-नुमा वो रौशनी जो तिरे हुस्न-ए-बे-मिसाल में है वो नग़मगी जो दरख़्शाँ है तेरे जलवों में न रोज़-ओ-शब में फ़रोज़ाँ न माह-ओ-साल में है सवाद-ए-शाम में तारी है सेहर और फ़ुसूँ उसी का रंग तिरे हुस्न-ए-ला-ज़वाल में है हनूज़ जल्वा-नुमा ज़िंदगी में हो न सकी वो तमकनत जो तिरे क़हर और जलाल में है शिकस्त-ओ-रेख़्त से मिलती है ज़िंदगी को नुमूद मिरे वजूद का उंसुर तिरे कमाल में है किसी जिहत में रवाँ है ये कारवान-ए-हयात बस एक रख़्त-ए-सफ़र है जो माह-ओ-साल में है सहर क़रीब है बुझती हैं शब की क़िंदीलें फ़लक पे एक सितारा है सो ज़वाल में है तिरे जमाल से राह-ए-विसाल तक हर एक जो मरहला है मिरी दस्तरस के जाल में है अब और मुझ को रुलाएगी क्या शब-ए-हिज्राँ मिरा नसीब तिरे कूचा-ए-मलाल में है बहुत कशिश है तिरी सेहर-कार आँखों में अजीब हुस्न-ए-अदा तेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल में है जुनूँ की राह में हर सम्त है फ़रेब-ए-नज़र चलूँ जुनूब की जानिब क़दम शुमाल में है जवाब उस ने दिया है ऐ नामा-बर लेकिन वो बात अब भी नहीं जो मिरे सवाल में है 'सबा' अजीब सा जादू है उस की आँखों में न सामरी में है नर्गिस में न ग़ज़ाल में है