ये तेरे हिज्र का मौसम सराब जैसा है हर एक लम्हा मुसलसल अज़ाब जैसा है लबों पे उस के तबस्सुम के फूल खिलते हैं वो एक चेहरा मोअ'त्तर गुलाब जैसा है किसी ने जाम उठाया किसी की ज़ुल्फ़ खुली हवा के दोष पे मौसम सहाब जैसा है ब-नाम-ए-लाला-रुख़ाँ कुछ तो ज़हर-ए-ग़म पी लें तिरे लबों में हलाहिल शराब जैसा है वो मेरे पास है लेकिन ये हाल है अपना सुकून दिल का भी अब इज़्तिराब जैसा है क़रार-ए-जाँ भी वही इज़्तिराब-ए-जाँ भी वही वो एक शख़्स मुजस्सम-शबाब जैसा है ख़लिश है दिल में कसक सी है बेकली भी है 'सबा' ये होश का आलम भी ख़्वाब जैसा है