वो दोस्त था तो उसी को अदू भी होना था लहू पहन के मुझे सुर्ख़-रू भी होना था सुनहरी हाथ में ताज़ा लहू की फ़स्ल न दी कि अपने हक़ के लिए जंग-जू भी होना था बगूला बन के समुंदर में ख़ाक उड़ाना थी कि लहर लहर मुझे तुंद-ख़ू भी होना था मिरे ही हर्फ़ दिखाते थे मेरी शक्ल मुझे ये इश्तिहार मिरे रू-ब-रू भी होना था कशिश थी फूल सी इस में तो ला-मुहाला मुझे असीर-ए-रंग गिरफ़्तार-ए-बू भी होना था सज़ा तो मिलना थी मुझ को बरहना लफ़्ज़ों की ज़बाँ के साथ लबों को रफ़ू भी होना था सफ़र का बोझ उठाने से पेशतर 'साजिद' मिज़ाज-दान-ए-रह-ए-जुस्तुजू भी होना था