वो एक लम्हा जिसे जावेदाँ कहा जाए मिले तो हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ कहा जाए उन्हीं से रूह को फ़रहत उन्हीं से दिल को क़रार वो हादसात जिन्हें जाँ-सिताँ कहा जाए इसी में चंद मोहब्बत के दिन भी शामिल हैं तमाम उम्र को क्यों राएगाँ कहा जाए मिरे नसीब में लिखे न जा सके तुम से वो चार तिनके जिन्हें आशियाँ कहा जाए मिरे हुजूम-ए-तमन्ना की आख़िरी मंज़िल बस एक मर्ग जिसे ना-गहाँ कहा जाए अदा-ए-तमकनत-ए-हुस्न का तक़ाज़ा है हर इक सितम पे उन्हें मेहरबाँ कहा जाए हर एक क़तरे में सौ सौ हिकायतें होंगी हज़ार दीदा-ए-तर बे-ज़बाँ कहा जाए हरीम-ए-दिल में कहीं रह गई ख़लिश बन कर किसी की याद जिसे नीश-ए-जाँ कहा जाए हमारे अश्क ही जब 'नूर' रख सके न भरम फिर और किस को भला राज़दाँ कहा जाए