ये कैसा संसार है बाबा हर-सू हाहा-कार है बाबा जो भी याँ ज़रदार है बाबा बेड़ा उस का पार है बाबा दौलत पर मत इतना अकड़ो रेत की ये दीवार है बाबा शर्म-ओ-हया से जो आरी है आज वही हुशियार है बाबा जीवन इक दरिया है ग़म का फिर भी ये उपहार है बाबा टेढ़े सीधे हो जाते हैं वक़्त की ऐसी मार है बाबा 'अख़्तर' हर पल बच के रहना बातिल की सरकार है बाबा