वो जिन की छाँव में पले बड़े हुए इधर उधर पड़े हैं सब कटे हुए हज़ीमतों के कर्ब की अलामतें चराग़ ताक़ ताक़ हैं बुझे हुए तमाम तीर दुश्मनों से जा मिले कमान-दार क्या करें डटे हुए विसाल-रुत में हिज्र की हिकायतें उदास कर गई हैं दिल खुले हुए घरों की रौनक़ें वही जो थीं कभी मगर भुला दिए गए गए हुए तनी तनी सी गर्दनें झुकी हुई दुआ को हाथ हैं सभी उठे हुए