वो जो मुझ से ख़फ़ा नहीं होता मैं भी उस से जुदा नहीं होता काश रहबर मिला नहीं होता मैं सफ़र में लुटा नहीं होता हम तो कब के बिखर गए होते जो तिरा आसरा नहीं होता हम शराबी अगर नहीं बनते एक भी मै-कदा नहीं होता जिस जगह क़ुर्बतें पनप जाएँ उस जगह फ़ासला नहीं होता आग नफ़रत की जिस में लग जाए पेड़ फिर वो हरा नहीं होता मंदिरों मस्जिदों पे लड़ते हो क्या दिलों में ख़ुदा नहीं होता मस्लहत कुछ तो है 'हिलाल' इस में ज़लज़ला यूँ बपा नहीं होता