वो काम कीजिए जो पसंद आए चार के लम्हात-ए-मुस्तआ'र नहीं ए'तिबार के दिल लीजे जान लीजे सितम कीजिए मगर ता'ने हैं नागवार हमें बार बार के आएँ न आएँ आप को अब इख़्तियार है हम तो चले हैं काट के दिन इंतिज़ार के जो कुछ हैं दाग़ आज रुख़-ए-माहताब पर वो नक़्श तो नहीं हैं दिल-ए-दाग़-दार के पुख़्ता अगर हों अपने अज़ाएम तो जान-ए-मन उन्वान ही बदल दें ग़म-ए-रोज़गार के शौक़-ए-शिकार हो तो बनें माहिर-ए-शिकार वर्ना शिकार होंगे बजाए शिकार के ला साक़िया बज़ूद पिला अब शराब-ए-नाब वर्ना गुज़र न जाएँ कहीं दिन बहार के 'ख़ाकी' हर एक शे'र मुरस्सा है इस लिए हासिद भी दाद देंगे यक़ीनन पुकार के