वो करें मुझ पे इनायात ग़लत नामा-बर है तिरी ये बात ग़लत ख़्वाब देखा तो नहीं है क़ासिद मुझ से वो और मुलाक़ात ग़लत मेरे दिल को न यक़ीं आएगा तुम न थे ग़ैर के घर रात ग़लत ख़ैर यूँहीं सही दुश्मन सच्चा अच्छा अच्छा मिरी हर बात ग़लत मेरे अश्कों की झड़ी है ये तो आप समझे रहें बरसात ग़लत तुम पे मरता हूँ कहा जब तो कहा क्या ये बकता है ख़ुराफ़ात ग़लत शिकवा-ए-ग़ैर पे झुँझला के कहा मैं न मानूँगा तिरी बात ग़लत मुझ को महफ़िल में जगह दें वो झूट ग़ैर की हो न मुदारात ग़लत मैं तो कहता हूँ पते की साहिब तुम कहे जाओ तिरी बात ग़लत शिकवा-ए-जोर करूँ मैं तौबा आप के हैं ये ख़यालात ग़लत मय से और तौबा करे तू 'नश्तर' मैं न मानूँगा तिरी बात ग़लत