वो क्या जानें कि दिल क्यूँकर किसी के दिल से मिलता है कि छुप कर मिलने वालों का पता मुश्किल से मिलता है ज़बान-ए-हाल से कहती है बर्बादी मज़ारों की अदम का रास्ता उजड़ी हुई मंज़िल से मिलता है झुकी जाती है गर्दन बार-ए-एहसान-ए-मुरव्वत से हम उस से सर से मिलते हैं जो हम से दिल से मिलता है इलाही ये भी क्या ख़ूँ-गश्ता हसरत-हा-ए-पिन्हाँ है चमन में रंग-ए-गुल क्यों मेरे ख़ून-ए-दिल से मिलता है मैं क्या बतलाऊँ ऐ 'तौफ़ीक़' लज़्ज़त दर्द-ए-पिन्हाँ की पता ज़ख़्म-ए-जिगर का ख़ंजर-ए-क़ातिल से मिलता है