वो लफ़्ज़ तीर बना कर कमान भरता है

वो लफ़्ज़ तीर बना कर कमान भरता है
जो कान खींचने वालों के कान भरता है

उन्ही की आँख में मरता है डूब कर दरिया
कि जिन की प्यास का पानी जहान भरता है

मरज़ इलाज से बढ़ता गया तो हम पे खुला
तबीब-ए-इश्क़ तो अपनी दुकान भरता है

सितारे बनते हैं जब शाम तोड़ दे सूरज
यहीं से झोली तिरा आसमान भरता है

कोई बताए उसे हाल ताकि लौट आए
कि तेरा क़र्ज़ तिरा ख़ानदान भरता है

ख़ला उगलती है सय्यारे तेरी राहों में
तू हौसले से जो ख़ाली उड़ान भरता है

फ़लक से कुछ भी उतरता नहीं यूँही 'शाहिद'
ज़मीन-ज़ाद ज़मीं का लगान भरता है


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