वो मद प्याले लुंढाते ही रहे बस हमें बे-ख़ुद बनाते ही रहे बस उजालों से अंधेरा छट न पाया उजाले जगमगाते ही रहे बस न साथ अब तक किसी का दे सके आह ये रहबर रह दिखाते ही रहे बस किसी तीरा-मुक़द्दर के न काम आए सितारे झिलमिलाते ही रहे बस न कर पाए तुयूर-ए-शौक़ परवाज़ परों को फड़फड़ाते ही रहे बस वो काशानों को ख़ाक आबाद करते जो काशाने मिटाते ही रहे बस 'जमाल' ऐसा मुक़द्दर ने किया ग़र्क़ तदब्बुर तिलमिलाते ही रहे बस