वो न आए तो देखो हर तरफ़ उदासी है फूल भी हैं नम-दीदा चाँदनी ख़फ़ा सी है वाक़ई मिरी वहशत कुछ तो रंग ले आई मुझ पे हँसने वालों के रुख़ पे बद-हवासी है जाम दे न दे रुख़ से बस नक़ाब सरका दे हर निगाह ऐ साक़ी मय-कदे में प्यासी है मस्लहत-शिआ'रो हाँ दार है मिरी मंज़िल जुर्म अहद-ए-हाज़िर में सिर्फ़ हक़-शनासी है बाग़बाँ बहारों पर क्यों नज़र नहीं तेरी शोख़ शोख़ फूलों का रंग क्यों कपासी है वो मिरे ख़यालों में हँस रहे हैं ऐ 'माहिर' सुब्ह ख़ूबसूरत है शाम दिलरुबा सी है