वो रंग इश्क़ में परवरदिगार आ जाए दिखा दूँ आग को दामन बहार आ जाए इलाही ख़ैर ये आलम सियाह-बख़्ती का सुकून माँगिये और ज़ुल्फ़-ए-यार आ जाए हयात-ओ-मौत को तुम जानो हम तुम्हें जानें हमारे दीदा-ओ-दिल को क़रार आ जाए जो पोंछ लो मिरे आँसू तुम अपने दामन में तो फूल खिल के रहें और बहार आ जाए कलीम हौसला-ए-दीद फिर ब-ईं तकरार कहीं न जल के कोई शो'ला-बार आ जाए तुम आओ बज़्म में रुख़्सत करो चले जाओ लहद में यूँ मुझे शायद क़रार आ जाए नज़र बचा के मिरी आओ आते ही हँस दो बहार ही नहीं लुत्फ़-ए-बहार आ जाए इधर से नामा-ए-आमाल मैं चलूँ ले कर उधर से रहमत-ए-परवरदिगार आ जाए न मैं रहा तो बनाएगा बात क्या क़ासिद अगर वो कर के तिरा ए'तिबार आ जाए छुपाया गोर में मुँह रोज़-ए-हश्र के डर से यहाँ न गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार आ जाए मिरी बहार है पिन्हाँ तुम्हारे दामन में तुम ही न आओ तो क्यूँकर बहार आ जाए फ़रेब-ए-हुस्न भी है किस क़दर हसीन 'क़दीर' कि इस के भेस में इक शो'ला-बार आ जाए