वो उठ कर क़यामत उठाना किसी का वो दिल थाम कर बैठ जाना किसी का बुरा गर न मानो तो इतना कहें हम कि अच्छा नहीं है सताना किसी का मिरी आह ने उन को तड़पा दिया है जिन्हें खेल था दिल दुखाना किसी का ज़बाँ गो हुई बंद बिस्मिल की लेकिन लब-ए-ज़ख़्म पर है फ़साना किसी का उठे मेरे पहलू से दिल थाम कर वो क़यामत हुआ याद आना किसी का मिरे दुश्मन-ए-जाँ सब अहल-ए-जहाँ में कि आशिक़ है सारा ज़माना किसी का अजब क्या हज़ारों को बीमार डाले किसी की अयादत को जाना किसी का तिरे वस्ल से नाज़ है क्यों अदू को रहेगा न यकसाँ ज़माना किसी का मुझे और भी बद-गुमाँ कर रहा है क़सम मेरे सर की न खाना किसी का तड़पने में क्या जाने क्या मुँह से निकले न दुखता हुआ दिल दुखाना किसी का वो 'नौशाद' का छेड़ना वस्ल की शब वो शर्मा के आँखें झुकाना किसी का