या-रब है दिल मुदाम किसी इज़्तिरार में कुछ नक़्श रह गया है तिरे शाहकार में अब पड़ चुकी है ख़ूब तमन्ना की ख़ू मुझे तुम आ गए हो मैं हूँ मगर इंतिज़ार में तन्हाई-ए-सफ़र की अज़िय्यत है दिल-शिकन अब कोई राहज़न ही मिले रहगुज़ार में तेरे सितम पे तेरी तरफ़ देख कर हूँ चुप कितनी तवील बात है इस इख़्तिसार में अब ये खुला कि वो भी मिरी जुस्तुजू में थे मैं जिन को ढूँढता था सवाद-ए-बहार में गुल-रंग मय बिखेर के रुख़ पर चले हैं वो क़ौस-ए-क़ुज़ह तुलूअ' हुई रहगुज़ार में 'शौकत' बिछड़ गया हूँ उसी क़ाफ़िले से मैं मंज़िल ग़ुरूब हो गई जिस के ग़ुबार में