याद है शादी में भी हंगामा-ए-या-रब मुझे सुब्हा-ए-ज़ाहिद हुआ है ख़ंदा ज़ेर-ए-लब मुझे है कुशाद-ए-ख़ातिर-ए-वा-बस्ता दर रहन-ए-सुख़न था तिलिस्म-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद ख़ाना-ए-मकतब मुझे या रब इस आशुफ़्तगी की दाद किस से चाहिए रश्क आसाइश पे है ज़िंदानियों की अब मुझे तब्अ' है मुश्ताक़-ए-लज़्ज़त-हा-ए-हसरत क्या करूँ आरज़ू से है शिकस्त-ए-आरज़ू मतलब मुझे दिल लगा कर आप भी 'ग़ालिब' मुझी से हो गए इश्क़ से आते थे माने मीरज़ा साहब मुझे