याद तेरी जुदा नहीं होती मुझ से इक ये ख़ता नहीं होती कोई ख़्वाहिश नहीं मिरी शायद दिल से कोई दुआ नहीं होती याँ पे चुप बैठना ही बेहतर है बात यूँ हर जगह नहीं होती देख लो ख़ुद भी तुम सियाने हो इन बुतों में वफ़ा नहीं होती इश्क़ करने से बाज़ रहना तुम इस मरज़ की दवा नहीं होती छोड़ देती है साथ ये सब का ज़िंदगी बा-वफ़ा नहीं होती 'शान' अहल-ए-नज़र ये कहते हैं सादगी बे-अदा नहीं होती