यादों के दरीचों को ज़रा खोल के देखो हम लोग वही हैं कि नहीं बोल के देखो हम ओस के क़तरे हैं कि बिखरे हुए मोती धोका नज़र आए तो हमें रोल के देखो कानों में पड़ी देर तलक गूँज रहेगी ख़ामोश चटानों से कभी बोल के देखो ज़र्रे हैं मगर कम नहीं पाओगे किसी से फिर जाँच के देखो हमें फिर तोल के देखो सुक़रात से इंसान अभी हैं कि नहीं 'राम' थोड़ा सा कभी जाम में विष घोल के देखो