यक़ीन जाता रहा ए'तिबार ख़त्म हुआ तुम्हारे इश्क़ का सारा ख़ुमार ख़त्म हुआ कहाँ से लाऊँ वो हंगामा-हा-ए-इश्क़-ओ-जुनूँ वो शो'ला-आसा दिल-ए-बे-क़रार ख़त्म हुआ निकल रहा हूँ तिरे हल्क़ा-ए-मोहब्बत से कि गर्द बैठ चुकी और ग़ुबार ख़त्म हुआ जहाँ बहारें थीं अपनों की चहचहाहट थी वो बे-चराग़ पड़ा सब्ज़ा-ज़ार ख़त्म हुआ लगा के आग कई मेहरबान चलते बने हमारे शहर का सब कारोबार ख़त्म हुआ ख़िज़ाँ का दौर है शाख़ों पे बर्ग-ओ-बार नहीं तुम्हारे जाते ही अहद-ए-बहार ख़त्म हुआ