यारो नहीं मारा किसी जल्लाद ने मुझ को है क़त्ल किया उस सितम-ईजाद ने मुझ को आँखों से लहू रोने लगा फेंक के नश्तर देखा जूहीं इस रंग से फ़स्साद ने मुझ को नासेह तू न बक मग़्ज़ न खा जुज़ सबक़-ए-इश्क़ कुछ और पढ़ाया नहीं उस्ताद ने मुझ को थक जाए तिरा हल्क़ मिरी नींद गई दिल बेचैन किया क्या तिरी फ़रियाद ने मुझ को है जाम कहाँ शीशा किधर किस की मय-ए-नाब उन सब को भुलाया है तिरी याद ने मुझ को किस चैन से कटती थी मिरी कुंज-ए-क़फ़स में आज़ाद किया काहे को सय्याद ने मुझ को अफ़्सोस मिरी जान भी क्या खोवेगा अब ये रुस्वा तो किया इस दिल-ए-नाशाद ने मुझ को