ज़माने की बातों से बे-दिल नहीं हूँ जो मौजों से टूटे वो साहिल नहीं हूँ तड़पता हूँ अपनी हक़ीक़त समझ कर क़तील-ए-मशिय्यत हूँ बिस्मिल नहीं हूँ है ख़ाक-ए-मदीना से भी मुझ को निस्बत जो मिल जाए पानी में वो गिल नहीं हूँ तुझे माँगता हूँ तुझे देने वाले भिकारी नहीं हूँ मैं साइल नहीं हूँ मिरे हाथ में अपना दस्त-ए-सख़ा दे ये कह दे सख़ावत के क़ाबिल नहीं हूँ मैं अपनी हक़ीक़त समझता हूँ ऐ दिल मैं अपनी हक़ीक़त से ग़ाफ़िल नहीं हूँ ये कह कर निकल आया ज़िंदाँ से बाहर मैं पाबंद-ए-तौक़-ओ-सलासिल नहीं हूँ वो दे अज़्म-ए-मोहकम मुझे देने वाले पुकार उट्ठे मुश्किल कि मुश्किल नहीं हूँ 'गिरामी' भिकारी हूँ ख़्वाजा के दर का किसी ग़ैर के दर का साइल नहीं हूँ