ये आलम अब धुएँ का कार-ख़ाना लग रहा है बराह-ए-रास्त साँसों पर निशाना लग रहा है हमारे अह्द की हैवानियत का सुर्ख़ क़िस्सा क़ुरून-ए-जाहिलियत का फ़साना लग रहा है चराग़ों को मुहय्या कीजिए सूरज-पनाही हवाओं का रवय्या जारेहाना लग रहा है तिरा मम्नून हूँ ऐ जज़्बा-ए-सहरा-नवर्दी सुलगती रेत का मंज़र सुहाना लग रहा है हमारी वज़्अ'-दारी को सराहो चारासाज़ो नया ज़ख़्म-ए-तअल्लुक़ भी पुराना लग रहा है हम अपने सब्ज़-ओ-नम उस्लूब के मारे हुए हैं नया लहजा भी अब हम को पुराना लग रहा है किसी आहंग-ए-नौ की जुस्तुजू में है मुसलसल ये मेरा दिल जो बे-तब्ल-ओ-तराना लग रहा है हज़ारों सूरतें हैं मुनअ'किस चेहरा-ब-चेहरा मकान-ए-शश-जिहत आईना-ख़ाना लग रहा है हमें दरकार है इक दूसरे का कासा-ए-सर ब-ज़ाहिर हम में गहरा दोस्ताना लग रहा है ज़मीं की गहरी ख़ामोशी नहीं बे-वज्ह 'जौहर' ज़मीं में दफ़्न राज़ों का ख़ज़ाना लग रहा है